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ग़ज़ल
चमन में ग़ुंचा-ए-गुल खिलखिला के मुरझाए
यही वो थे जिन्हें हँस हँस के जान देना था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
पस-ए-वस्ल हम जो सरक गए तो वो खिलखिला के फड़क गए
कहा शोख़ियों ने चलो हटो कि हुज़ूर तुम से ख़फ़ा हुए