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ग़ज़ल
वो अच्छा था जो बेड़ा मौज के रहम ओ करम पर था
ख़िज़र आए तो कश्ती डूबती मालूम होती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
वो कौन था जो ले के मुझे घर से चल पड़ा
सूरत ख़िज़र की थी न वो चेहरा ख़िज़र का था
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
अपनी जेबों से रहें सारे नमाज़ी हुश्यार
इक बुज़ुर्ग आते हैं मस्जिद में ख़िज़र की सूरत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
ना-बलद हो के रह-ए-इश्क़ में पहुँचूँ तो कहीं
हमरा ख़िज़र को याँ कहते हैं गुमराह सुना
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नाज़ाँ न हों क्यूँ ख़िज़र भला उम्र पे अपनी
हज़रत ने तिरा ज़ुल्फ़-ए-रसा को नहीं देखा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
मोहब्बत की हर इक मंज़िल पे सहरा-ए-अदम निकला
ख़िज़र भी साथ दे सकते नहीं हर गाम पर मेरा