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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तिरी नज़रों के औज़ारों ने मेरे जिस्म-ए-ख़ाकी का
जिगर खोदा तो टूटे दिल का कुछ मलबा निकल आया
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
हर एक दौर में इंसाँ की बूद-ओ-बाश मिली
किसी ज़मीं को भी खोदा तो मेरी लाश मिली