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ग़ज़ल
मेरा सफ़र मिरा ही था उठते किसी के क्या क़दम
अपने लिए था खोजना अपना ही नक़्श-ए-पा मुझे
यासमीन हबीब
ग़ज़ल
उसे रेत रेत में खोजना उसे लहर लहर में ढूँढना
कोई शहद सा तिरा अहद था इन्ही साहिलों पे लिखा हुआ
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
आज बहुत दिन बा'द मैं अपने कमरे तक आ निकला था
जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है