आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "khopa.dii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "khopa.dii"
ग़ज़ल
तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप
दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना-ए-अल्फ़ाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की
सिर्फ़ इक लम्हा बरसता रहा सावन बन के
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
शाम है गहरी तेज़ हवा है सर पे खड़ी है रात
रस्ता गए मुसाफ़िर का अब दिया जला कर देख