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ग़ज़ल
ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
किसी ऐसे शरर से फूँक अपने ख़िर्मन-ए-दिल को
कि ख़ुर्शीद-ए-क़यामत भी हो तेरे ख़ोशा-चीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इसी उम्मीद पर हम तालिबान-ए-दर्द जीते हैं
ख़ोशा दर्द दे कि तेरा और दर्द-ए-ला-दवा होगा
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
शरह-ए-हंगामा-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल
रह-बर-ए-क़तरा-बा-दरिया है ख़ोशा मौज-ए-शराब
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इब्न-ए-आदम ख़ोशा-ए-गंदुम पे है माइल-ब-जंग
ये न है मस्जिद का क़िस्सा और न बुतख़ानों की बात
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
अगर वो शो'ला-रू पूछे मिरे दिल के फफूलों को
तो उस के सामने इक ख़ोशा-ए-अंगूर ले जाना