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ग़ज़ल
ये खोटे सिक्के हैं अल्फ़ाज़ इस सदी की सुनो
ये इन का दौर नहीं ये तो इस जहाँ से गए
सादिक़ा नवाब सहर
ग़ज़ल
'आरज़ू' अब भी खोटे खरे को कर के अलग ही रख देंगी
उन की परख का क्या कहना है जो टेकसाली आँखें हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
गिर गया अपनी निगाहों में ही अपना सब वक़ार
जब सर-ए-बाज़ार खोटे को खरा हम ने कहा
राजेन्द्र नाथ रहबर
ग़ज़ल
ख़ूब पहचान लिया हम ने तुम्हें दिल दे कर
सच कहा है कि जो खोते हैं वही पाते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
ख़ालिद अख़लाक़
ग़ज़ल
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
फ़लक पर देख कर तारे भी अपना होश खोते हैं
पहन कर जिस घड़ी बैठे है वो रश्क-ए-क़मर मोती
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं क्यूँ बुराई सुनूँ दोस्तों की ऐ 'बानी'
अलग नहीं उन्हीं खोटे खरे दिलों से मैं