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ग़ज़ल
लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है
कुछ इस में ख़ूबी-ए-रिंदान-ए-तिश्ना-काम भी है
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया