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ग़ज़ल
उक़्दा-ए-पेच-ओ-ख़म-ए-ज़ुल्फ़ का खुलना मा'लूम
राज़-ए-अलम से है ये सिलसिला-ए-राज़ जुदा
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ख़्वाब खुलना है जो आँखों पे वो कब खुलता है
फिर भी कहिए कि बस अब खुलता है अब खुलता है
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
वैसे तो आसान नहीं था खुलना बंद किवाड़ों का
दाख़िल होना दिल में लेकिन दस्तक से आसान हुआ
देवमणि पांडेय
ग़ज़ल
काग़ज़ की सदाक़त हूँ गो वक़्फ़-ए-किताबत हूँ
सफ़्हों से इबारत हूँ खुलना है मुहाल अपना