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ग़ज़ल
ये ख़ुनुक ख़ुनुक हवाएँ ये झुकी झुकी घटाएँ
वो नज़र भी क्या नज़र है जो समझ न ले इशारा
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
दिन में हम को देखने वालो अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो लें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-अबरू-ओ-मिज़्गाँ कै ख़ुनुक साए में
आतिश-अफ़रोज़ जुनूँ-ख़ेज़ शरर-बार आँखें
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
मोहब्बत को ख़ुनुक साए में नींद आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए
हम धूप में जलने को तिरे गाँव से आगे निकल आए
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए
हम धूप में जलने को तिरे गाँव से आगे निकल आए
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कोई तो जाने कि गुज़री है दिल पे क्या जब भी
ख़िज़ाँ के बाग़ में झोंके ख़ुनुक हवा के चले