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ग़ज़ल
ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से
हमारी ज़िंदगी का एक ही आलम है बरसों से
वक़ार मानवी
ग़ज़ल
अगर उस ख़ुश-दहन के लब पे देखो रंग मिस्सी का
तो फिर ज़िन्हार बर्ग-ए-ग़ुंचा-ए-सोसन न देखोगे
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
समझे थे बे-ख़बर जिन्हें हुश्यार वो भी हैं
साक़ी इस अंजुमन के निगह-दार वो भी हैं
मसूद अख़्तर जमाल
ग़ज़ल
ज़िंदगी है जेब-ओ-दामन पर गराँ अपनी जगह
ख़्वाहिशें लेती हैं दिल में चुटकियाँ अपनी जगह
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
ये क्या हुआ मुझे ये वज़्अ क्यूँ बना ली है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़ज़ल
अश्क-ए-ख़ुद्दार जो शर्मिंदा न हो दामन से
रश्क-ए-सद-गौहर-ए-ख़ुश-आब हुआ करता है
सय्यद सिद्दीक़ हसन
ग़ज़ल
मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से
उलझे हैं ख़ार दामन-ए-बाद-ए-बहार से