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ग़ज़ल
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तू कफ़-ए-ख़ाक ओ बे-बसर मैं कफ़-ए-ख़ाक ओ ख़ुद-निगर
किश्त-ए-वजूद के लिए आब-ए-रवाँ है तू कि मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
है अपनी किश्त-ए-वीराँ सरसब्ज़ इस यक़ीं से
आएँगे इस तरफ़ भी इक रोज़ अब्र-ओ-बाराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये अब्र-ओ-किश्त की दुनिया में कैसे मुमकिन है
कि उम्र-भर की वफ़ा का कोई सिला ही न हो
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
सैल-ए-रंग आ ही रहेगा मगर ऐ किश्त-ए-चमन
ज़र्ब-ए-मौसम तो पड़ी बंद-ए-बहाराँ तो खुला
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
पड़ी थी किश्त-ए-तमन्ना जो ख़ुश्क मुद्दत से
रहीन-ए-मिन्नत-ए-चश्म-ए-पुर-आब हो के रही
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
बाग़-ओ-बहार है वो मैं किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हूँ
जो लुत्फ़ इक इधर है तो याँ भी इक समाँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
ख़ाली काग़ज़ पर लकीरें खींचता रहता हूँ मैं
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल
बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं