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ग़ज़ल
इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा
इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
वो देख सितारों के मोती हर आन बिखरते जाते हैं
अफ़्लाक पे है कोहराम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कोई कैसे करे दिल में छुपे तूफ़ाँ का अंदाज़ा
सुकूत-ए-मर्ग छाया है किसी कोहराम से पहले
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कोई सुनता तो इक कोहराम बरपा था हवाओं में
शजर से एक पत्ता जब गिरा आहिस्ता आहिस्ता