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ग़ज़ल
आतिश-ए-फ़ुर्क़त से आलम कोरा-ए-आतिश हुआ
आसमाँ है दूद हम अख़गर में और मुजमर ज़मीं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
इस घर में इक कोरा आँचल रोते रोते भीग चला है
भूले ही से सही कभी तो मार इधर भी फेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
लिफ़ाफ़े में एक कोरा काग़ज़ पड़ा हुआ था
समझ गया था मैं जो कुछ उस में लिखा हुआ था
अहमद कमाल हशमी
ग़ज़ल
जो सिर्फ़ बात करे और 'अमल में कोरा हो
तुम ऐसे शख़्स के किरदार को रिया समझो