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ग़ज़ल
मैं ख़ुद आसूदा हूँ कम-कोश हूँ या पथर हूँ
ज़ख़्म खा के भी मुझे दर्द का इरफ़ाँ न हुआ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
इश्क़ में अहल-ए-वफ़ा कितने अज़िय्यत-कोश हैं
ख़ून दिल का हो रहा है लब मगर ख़ामोश हैं
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
क्या ख़बर 'सीमाब' कब घबरा के दे दे अपनी जान
ज़ब्त गो अब तक तहम्मुल-कोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ये हुस्न-ए-सितम-कोश सितम-कोश है कब तक
कब तक ये नज़र बानी-ए-बे-दाद रहेगी
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
शब इस दिल-ए-गिरफ़्ता को वा कर ब-ज़ोर-ए-मय
बैठे थे शीरा-ख़ाने में हम कितने हर्ज़ा-कोश
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये हुस्न-ए-सितम-कोश सितम-कोश है कब तक
कब तक ये नज़र बानी-ए-बेदाद रहेगी