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ग़ज़ल
कहा मैं ने बात वो कोठे की मिरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा कि जाने मिरी बला तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आएँ जाँ दे आएँ
दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं या-रब दिल के पार
जो मिरी कोताही-ए-क़िस्मत से मिज़्गाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर
नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है