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ग़ज़ल
रात भर जिस की तमन्ना में जले हैं हम लोग
वो सहर शैख़ की नज़रों में है कुफ़्फ़ार की बात
ख़ालिद यूसुफ़
ग़ज़ल
गरचे पेश-ए-ताक़-ए-अबरू-ए-सनम गेसू नहीं
काबा पर नर्ग़ा हुआ है लश्कर-ए-कुफ़्फ़ार का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
फिरे उस ज़ुल्फ़-ओ-रू के 'इश्क़ में दोनों-जहाँ हम से
उधर कुफ़्फ़ार फिर गए सब इधर ईमानियाँ हम से
वली उज़लत
ग़ज़ल
सज्दा तुम्हें कर बैठेंगे कुफ़्फ़ार-ओ-मुसलमाँ
अब के भी अगर आओगे इस शान से बाहर
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
आप गर्दां हैं हरम में हम हरीम-ए-यार में
फ़र्क़ क्या है शैख़ साहिब मोमिन-ओ-कुफ़्फ़ार में
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
हश्र तक होंगे न कुफ़्फ़ार से दीन-दार जुदा
कहीं तस्बीह से होती नहीं ज़ुन्नार जुदा
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अद्ल हूँ
या रब हिसाब-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अगर वो सर्व-क़द गर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ आ जावे
कफ़-ए-हर-ख़ाक-ए-गुलशन शक्ल-ए-क़ुमरी नाला-फ़र्सा हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ौफ़ सब जाता रहा दिल से अज़ाब-ए-हिज्र का
नक़्द-ए-जाँ देना गुनाह-ए-इश्क़ का कफ़्फ़ारा था