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ग़ज़ल
यक़ीं है 'शाद' मुझ को कुल्लियात-ए-नज़्म-ए-फ़ितरत से
गुलों ने रंग-ओ-निकहत के बहुत मज़मूँ चुराए हैं
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ज़र्द पत्ते ख़ुश्क कलियाँ फूल मुरझाए हुए
ये हैं अक्स-ए-क़ल्ब-ए-वीराँ हम ख़िज़ाँ कहते रहे
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
यूँ ही खिलती रहेंगी सेहन-ए-चमन में कलियाँ
यूँही चलती रहेगी बाद-ए-सबा मेरे ब'अद
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अल्लाह-रे उस की चौखट है बोसा-गाह-ए-आलम
कहता है संग-ए-असवद मैं संग-ए-आस्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-ज़ीस्त से मिल जाएगी फ़ुर्सत तुम को
मेरे अशआ'र को होंटों से लगा लो यारो
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-अफ़्सुर्दगी को ऐश-ए-बेताबी हराम
वर्ना दंदाँ दर दिल अफ़्शुर्दन बिना-ए-ख़ंदा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-हिज्र को क्या रोऊँ तिरे सामने मैं
दिल जो ख़ाली हो तो आँखों में ग़ुबार आ जाए
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-दुनिया मिटे भी तो सख़ी के फ़ैज़ से
हाथ धोने को मिले बहता हुआ पानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
क़रियात-ए-हिन्द का अब ये रंग है कि कोसों
जावे कोई जिधर को उजड़े नगर पड़े हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वक़्त ने दिल की तबीअ'त में वफ़ा रक्खी है
कुल्फ़त-ए-आगही फिर उस की सज़ा रखी है
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
कुल्फ़त-ए-हिज्र का क़िस्सा बड़ा तूलानी था
हम सुनाते भी तो सुनता वो कहाँ आख़िर-ए-शब