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ग़ज़ल
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
लाज़िम है सियह-मस्ती कुल्फ़त के भुलाने को
पर जाम उठाना है मुश्किल तन-ए-आसाँ पर
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
ये देखें राज़-ए-दिल अब कौन करता है अयाँ पहले
नज़र करती है इज़हार-ए-मोहब्बत या ज़बाँ पहले
अर्श सहबाई
ग़ज़ल
सूनी है बज़म-ए-आलम-ए-इमकां तिरे बग़ैर
दुनिया किसी ग़रीब की वीराँ तिरे बग़ैर
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
ये तेरा ख़ाना-ए-दिल में भी रहना और जुदा रहना
कहाँ से सीखा तू ने ऐ बुत-ए-काफ़िर ख़ुदा रहना
राव मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
नाजिर अल हुसैनी
ग़ज़ल
गुबार-ए-एहसास-ए-पेश-ओ-पस की अगर ये बारीक तह हटाएँ
तो एक पल में न जाने कितने ज़मानों के अक्स थर्थराएँ
असलम अंसारी
ग़ज़ल
क़ुर्बानी-ए-इंसाँ का नहीं शौक़ गर उस को
फिर ईद के दिन क्यों मुझे ज़िंदाँ से निकाला
करामत अली शहीदी
ग़ज़ल
हुजूम-ए-बे-खु़दी में ग़म की तस्वीरें नज़र आईं
मुझे शीशे में जब रिंदों की तक़दीरें नज़र आईं