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ग़ज़ल
ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया
मार डाला मरने वाले को कि अच्छा कर दिया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है
सब्र रुख़्सत हो रहा है इज़्तिराब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
शौक़ से नाकामी की बदौलत कूचा-ए-दिल ही छूट गया
सारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं
वो मेरी बे-ख़बरी की भी ख़बर रखते हैं
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
दिल पे ख़ुदा की मार कि फिर भी चैन नहीं आराम नहीं
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा
ग़ैरत हो तो मरने से पहले ही फ़ना हो जा