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ग़ज़ल
जुनून-ए-कुश्त-ओ-ख़ूँ को नाम देते हैं शुजाअ'त का
अमावस की शब-ए-तारीक को पूनम समझते हैं
तालिब चकवाली
ग़ज़ल
बशीर दादा
ग़ज़ल
वो कुश्त-ओ-ख़ूँ वो तशद्दुद तो इक बहाना था
उसे तो सिर्फ़ मिरा ज़र्फ़ आज़माना था
रहबर ताबानी दरियाबादी
ग़ज़ल
ग़ुबार नफ़रतों का तो दिलों में है भरा हुआ
फ़ज़ा से अब्र-ए-कुश्त-ओ-ख़ून छट गया तो क्या हुआ
अज़ीज़ बघरवी
ग़ज़ल
दिलों को जीतना था मैं ने जंग जीतने के बा'द
दरून-ए-जंग मुझ से कुश्त-ओ-ख़ून में ग़ज़ल हुई
तौहीद ज़ेब
ग़ज़ल
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए