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ग़ज़ल
'हातिम' के बिन इशारा सच कह ये चश्म-ओ-अबरू
किस से लड़ाइयाँ हैं किस पर चढ़ाइयाँ हैं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
ये सतह-ए-ख़ाक है क्या रज़्म-गाह का मैदान
कि जिस पे होती हुई नित लड़ाइयाँ देखीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
जावेद जमील
ग़ज़ल
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
क़ातिल से अब तो हम ने आँखें लड़ाइयाँ हैं
ताबाँ अब्दुल हई
ग़ज़ल
दीवार-ओ-दर की छाती सूराख़ हो गई है
क्या रौज़नों से उस ने आँखें लड़ाइयाँ हैं
मिर्ज़ा नईम बेग जवान
ग़ज़ल
मुस्तक़िल नहीं 'अमजद' ये धुआँ मुक़द्दर का
लकड़ियाँ सुलगने में देर कुछ तो लगती है