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ग़ज़ल
ज़िंदगी से क्या लड़ें जब कोई भी अपना नहीं
हो के शल धारे के रुख़ पर हम को बहना आ गया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
तुझे कुछ ख़बर भी है मोहतसिब इसी बज़्म में तिरे सामने
लड़ें दूर ही से निगाहें कभी यूँ भी जाम खनक गए
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
क्या क़यामत है कि हम ख़ुद ही कहें ख़ुद ही सुनें
एक से एक अबु-जेहल है किस किस से लड़ें