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ग़ज़ल
फिर सफ़-आरा हुईं फ़ौजें लब-ए-दरिया-ए-फ़ुरात
हम को मा'लूम है इस जंग में क्या होता है
जाफ़र अब्बास
ग़ज़ल
लब-ए-दरिया हूँ लेकिन तिश्नगी महसूस करता हूँ
मैं अपने घर में ख़ुद को अजनबी महसूस करता हूँ
अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल
ग़ज़ल
शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब
रुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब
इफ़्तिख़ार आज़मी
ग़ज़ल
ये गुल भी ज़ीनत-ए-आग़ोश-ए-दरिया-ए-क़ज़ा निकले
जिन्हें हम बा-वफ़ा समझे थे वो भी बेवफ़ा निकले
ऐश मेरठी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नुसरत लखनवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दरिया-ए-फ़िक्र-ए-नौ की रवानी में गिर गया
सूरज फिसल के बर्फ़ के पानी में गिर गया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
समो न तारों में मुझ को कि हूँ वो सैल-ए-नवा
जो ज़िंदगी के लब-ए-मो'तबर से निकलेगा