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ग़ज़ल
भूल गए हैं अपनी हस्ती मोरों की है और ही मस्ती
सुब्ह सफ़ेद सी लाचे वाली लाल गुलाबी ना’रों वाला
इक़तिदार जावेद
ग़ज़ल
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है