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ग़ज़ल
ऐसी लहरें ऐसी बहरें कब क़िस्मत से मिलती हैं
अच्छे माँझी अब नय्या को पार उतरने मत देना
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
तुम्हें लाहौर के फ़ुट-पाथ का परमिट मिला है
लिहाज़ा राय-विंड के क़स्र-ए-सुल्तानी से बचना