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ग़ज़ल
ख़ाल-ओ-ख़त के वरक़ लम्हा-ए-रफ़्ता कब का चुरा ले गया
क्या छुपाते हैं अब मेरी बे-चेहरगी की ख़बर आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
है दर-ए-दिल पे कोई संग-ए-गिराँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जुज़ इज्ज़ क्या करूँ ब-तमन्ना-ए-बे-ख़ुदी
ताक़त हरीफ़-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
ग़ज़ल
ये हालत है कि बेदारी भी है इक ख़्वाब का आलम
मआज़-अल्लाह अपना ख़ूगर-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ होना
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
सुबुक-सरी के लिए तुम ने क्या किया 'राशिद'
फ़लक से शिकवा-ए-बार-ए-गिराँ तो होता रहा
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
असीर-ए-ज़ुल्फ़ जो मरते हैं तो वो कहते हैं
ज़रा भी सदमा-ए-क़ैद-ए-गिराँ उठा न सके