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ग़ज़ल
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जिस धज्जी को गलियों में लिए फिरते हैं तिफ़्लाँ
ये मेरा गरेबाँ है कि लश्कर का अलम है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वक़्त करता है हमेशा और ही कुछ फ़ैसले
जो थे लश्कर में बहादुर डर के मारे मर गए