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ग़ज़ल
फ़नकारों से पूछ रहे हो क्यों लौटाए हैं सम्मान
पूछो कितने चुप बैठे हैं शर्म उन्हें कब आएगी
गौहर रज़ा
ग़ज़ल
उस ने तो देखे अन-देखे ख़्वाब सभी लौटाए
और थे शायद टूटी हुई ताबीर बनाने वाले