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ग़ज़ल
दोनों पर बे-लौस मोहब्बत की इक छतरी काफ़ी थी
तुम ने सर पर क्या ताना है दोहरे तिहरे मतलब का
हमीदा शाहीन
ग़ज़ल
करम मौला करे तो आदमी बे-लौस होता है
न हो उस की अगर रहमत तो ये ताक़त नहीं मिलती
आज़िम गुरविंदर सिंह कोहली
ग़ज़ल
मुझ को बे-लौस मोहब्बत के 'एवज़ में 'शम्सी'
हो 'अता ज़ख़्म की सौग़ात तो दुख होता है
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
ग़ज़ल
बग़ैर अपने किसी मतलब के उल्फ़त कौन करता है
ये दुनिया है यहाँ बे-लौस चाहत कौन करता है
अफ़ज़ल पेशावरी
ग़ज़ल
देख कर ग़ैरों की बे-लौस वफ़ा को 'मंज़र'
बेबसी में हमें अपनों के सितम याद आए