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ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है
दिल मिरा उन की नवाज़िश से तो घबरा जाए है
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
ग़ज़ल
ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती
वगरना हम भी उठाते थे अज़्ज़त-ए-अलम आगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'अलम’ रब्त-ए-दिल-ओ-पैकाँ अब इस आलम को पहुँचा है
कि हम पैकाँ को दिल दिल को कभी पैकाँ समझते हैं
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
बदला न मेरा रंज-ओ-अलम हाए रे क़िस्मत
दिल और मचल जाता है दिल-गीर के आगे
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-दर्द का कुछ तुझ को पता है कि नहीं
नासेहा तू ने कभी इश्क़ किया है कि नहीं
आलम फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
मिला क्या क्या न उन से हम को ऐ 'आलम' मोहब्बत में
सितम ढाया करें वो हम तो एहसानात कहते हैं
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
ग़ज़ल
बड़े चर्चे हैं 'आलम' आप की ख़ाना-ख़राबी के
ख़ुदा का शुक्र है मक़्ते में आ कर बैठ जाते हैं