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ग़ज़ल
वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है
जो मुँह से दिस कहे तो उस का मतलब दैट होता है
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
सियासत में अदाकारी तो पहले से भी बढ़ कर है
हर इक लीडर में मक्कारी तो पहले से भी बढ़ कर है
कृष्ण प्रवेज़
ग़ज़ल
लीडरी चाहो तो लफ़्ज़-ए-क़ौम है मेहमाँ-नवाज़
गप-नवीसों को और अहल-ए-मेज़ को राज़ी करो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
इन पर फूल निछावर करने वाली जनता क्या जाने
अक्सर लीडर हारों वाले हेरा-फेरी करते हैं
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
मुअज़्ज़िज़ शख़्सियत है शहर का अब नामवर ग़ुंडा
कि बन बैठा है वो पार्टी का लीडर लोग कहते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
उड़ाएँगे डिनर में सारे लीडर मुर्ग़ियाँ कब तक
रेआया कुंडियों में ढूँढ खाए हड्डियाँ कब तक
रऊफ़ रहीम
ग़ज़ल
झूठ कपट छल बे-ईमानी चंदा रिश्वत लूट खसूट
जिस की सियासत ऐसी होगी क्या वो लीडर बाँटेगा
सादुल्लाह खां असर मल्कापुरी
ग़ज़ल
अभी कितने महाज़ों पर वतन को जंग लड़नी है
ये लीडर कर रहे हैं देखिए तक़रीर काग़ज़ पर