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ग़ज़ल
वो उठे हैं ले के ख़ुम-ओ-सुबू अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तिरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
जब सब के लब सिल जाएँगे हाथों से क़लम छिन जाएँगे
बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
खड़े हों ज़ेर-ए-तूबा वो न दम लेने को दम भर भी
जो हसरत-मंद तेरे साया-ए-दामन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
किस क़दर ख़ुश हूँ मैं 'नासिर' उन को पा लेने के बा'द
ऐसा लगता है कभी ऐसी ख़ुशी देखी न थी
हकीम नासिर
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को
झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें