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ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिलबरी ठहरा ज़बान-ए-ख़ल्क़ खुलवाने का नाम
अब नहीं लेते परी-रू ज़ुल्फ़ बिखराने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
बलाएँ लेते हैं उन की हम उन पर जान देते हैं
ये सौदा दीद के क़ाबिल है क्या लेना है क्या देना
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
लोग रो रो के भी इस दुनिया में जी लेते हैं
एक हम हैं कि हँसे भी तो गुज़ारा न हुआ