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ग़ज़ल
ये हुक्म है कि ज़मीन-ए-'फ़राज़' में लिक्खें
सो इस ज़मीन में हम पाँव धर के देखते हैं
हुमैरा राहत
ग़ज़ल
लिक्खें भी क्या कि अब कोई अहवाल-ए-दिल नहीं
चीख़ें भी क्या कि अब कोई सुनता नहीं सदा
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
कभी न कहता था दिल हमारा कि आँसुओं को लिखें सितारा
जुदाइयों की कसक से पहले ये इस्तिआरा ही दूसरा था
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
हम भी क्या अहल-ए-क़लम हैं कि बयाज़ दिल पर
ख़ुद ही इक नाम लिखें ख़ुद ही मिटाने लग जाएँ
बेदिल हैदरी
ग़ज़ल
इसे हम मर्सिया-गोयों पे 'मोहसिन' छोड़ देते हैं
लिखें हम आप अपना मर्सिया अच्छा नहीं लगता
मोहसिन ज़ैदी
ग़ज़ल
शान-ए-तग़ाफ़ुल अपने नौ-ख़त की क्या लिखें हम
क़ासिद मुआ तब उस के मुँह से जवाब निकला