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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
हवा के ख़ौफ़ से लिपटा हुआ हूँ ख़ुश्क टहनी से
कहीं जाना नहीं जाने की तय्यारी नहीं करनी
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
'अज़्म' उदासी का ये सहरा यूँ क़दमों से लिपटा है
जलने वालों को मिल जाए जैसे ठहर जाने का ग़म
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
मेरी उम्मीदों से लिपटे रहे अंदेशों के साँप
उम्र हर दौर में कटती रही चंदन बन के
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया
जितने अर्से में मिरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
ख़ून-ए-दिल रग रग में जम कर रह गया इस वहम से
बढ़ के सीने से न लिपटा ले मिरा क़ातिल मुझे