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ग़ज़ल
कश्मीर सी जागह में ना-शुक्र न रह ज़ाहिद
जन्नत में तू ऐ गीदी मारे है ये क्यूँ लातें
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
वो जो मंज़िलों पे ला कर किसी हम-सफ़र को लूटें
उन्हीं रहज़नों में तेरा कहीं नाम आ न जाए
हबीब जालिब
ग़ज़ल
शाम गए ये मंज़र हम ने मुल्कों मुल्कों देखा है
घर लौटें बोझल क़दमों से बुझे हुए अंगारे लोग
अज़रा नक़वी
ग़ज़ल
दिल तो इन पाँव पे लोटे है मिरा वक़्त-ए-ख़िराम
शब को दुज़दी से भी पर उन को दबा सकते नहीं
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
दिल उस का न लोटे कभी फूलों की सफ़ा पर
शबनम को दिखा दूँ जो तिरे गात का आलम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
लोटते हैं मस्त मय-ख़ाने के दर पर जा-ब-जा
जाम ओ सहबा साक़ी ओ पीर-ए-मुग़ाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
लोटते हैं जिस को सुन सुन कर हज़ारों मुर्ग़-ए-दिल
हो रहा है ज़िक्र किस के गेसुओं के दाम का
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
ये भी मुमकिन है कि उड़ जाएँ तो लौटें न कभी
जितने बच्चे हैं वो पर-दार नज़र आते हैं