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ग़ज़ल
इस कहानी का है 'रख़्शंदा' यही लुब्ब-ए-लुबाब
पहले इज़्ज़त हो तो फिर बा'द में चाहा जाए
रख़्शंदा नवेद
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तन्हाई सी तन्हाई है कैसे कहें कैसे समझाएँ
चश्म ओ लब-ओ-रुख़्सार की तह में रूहों के वीराने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
आज भी हैं वो सुलगे सुलगे तेरे लब ओ आरिज़ की तरह
जिन ज़ख़्मों पर पंखा झलते एक ज़माना बीत गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
समो न तारों में मुझ को कि हूँ वो सैल-ए-नवा
जो ज़िंदगी के लब-ए-मो'तबर से निकलेगा