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ग़ज़ल
शग़्ल-ए-मय कब तक ये साक़ी आँखें झुक आएँ बहुत
रात भीगी और ज़ुल्फ़ें भी परेशाँ हो गईं
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
शिकवे भरे हैं दिल में व-लेकिन 'मुहिब्ब'-ए-मन
कब तेरे आगे ताक़त-ए-गुफ़्तार है हमें
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
जो महव-ए-फ़िक्र-ए-ज़ीस्त हैं उन्हें भला ये क्या ख़बर
तुलूअ' माह कब हुआ कब आफ़्ताब ढल गया
नितिन नायाब
ग़ज़ल
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी