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ग़ज़ल
वफ़ूर-ए-ज़र वफ़ूर-ए-ऐश में तो बारहा 'रौशन'
बहुत से लोग ऐसे हैं ख़ुदा को भूल जाते हैं
रौशन लाल रौशन
ग़ज़ल
ऐब ऐ 'रौशन' समझते हैं हुनर कोई हुनर
ना-मुवाफ़िक़ है ज़माना अब कमाल अच्छा नहीं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
रौशन है जहाँ नूर से उस पर्दा-नशीं के
ख़ुर्शीद में ज़र्रा रुख़-ए-रौशन की ज़िया है
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
तारों की तरह रौशन ही रहे वो सब्ज़ा-ओ-गुल के दामन पर
जो क़तरा-ए-शबनम सूरज की किरनों से बग़ावत कर बैठे
रौशन बनारसी
ग़ज़ल
मुफ़ीद-ए-आम सुख़न हो ये शर्त है 'रौशन'
कि इस की क़द्र ख़ुद अहल-ए-कलाम करते हैं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
रवाना क़ाफ़िले वाले तो हो चुके 'रौशन'
हम इंतिज़ार में लैल-ओ-नहार बैठे हैं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
फ़ुर्क़त-ए-तालिब-ओ-मतलूब ग़ज़ब है 'रौशन'
जान को जिस्म से रुक रुक के निकलते देखा
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
हवस है किस को यहाँ तख़्त-ओ-ताज की 'रौशन'
ख़ुदा ने हम को दिया है शरफ़ गदाई का
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
जिगर को सोज़-ए-निहाँ ने जला दिया 'रौशन'
हुई जो अश्क-फ़िशाँ चश्म-ए-तर में आग लगी
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
गर दर्द-ए-दिल यूँहीं है सलामत तो एक दिन
'रौशन' ये याद रखना कि दुनिया में हम नहीं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
फ़िल्स-ए-माही को बताते माह-ए-रौशन आप हैं