दुनिया में हम सा कोई सरापा-अलम नहीं
दुनिया में हम सा कोई सरापा-अलम नहीं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
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दुनिया में हम सा कोई सरापा-अलम नहीं
वो दिन ही कौन सा है कि जो रोज़-ए-ग़म नहीं
हर दम तिरे मरीज़ की हालत ख़राब है
दर्द आज दिल में कल से ज़ियादा है कम नहीं
क्या ग़म मुझे मिटाए फ़लक ढूँढ ढूँड कर
नाम अपना फ़र्द-ए-नामवरी में रक़म नहीं
गुल खिल रहे हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है
बुलबुल चहक रही है सरीर-ए-क़लम नहीं
अहल-ए-क़लम हों ज़ेर-ए-नगीं मुल्क-ए-नज़्म है
क्यूँकर कहूँ कि साहिब-ए-तब्ल-ओ-अलम नहीं
क्या क्या अज़ीज़ ख़ाक हुए मिल के ख़ाक में
लेकिन यहाँ किसी का किसी को भी ग़म नहीं
होती है ग़ैब से मिरी इमदाद ऐ फ़लक
मिन्नत-कश-ए-इनायत-ए-अहल-ए-करम नहीं
यारान-ए-रफ़्तगाँ से बहुत जी को उन्स है
मिलते अगर मुसाफ़िर-ए-मुल्क-ए-अदम नहीं
गर दर्द-ए-दिल यूँहीं है सलामत तो एक दिन
'रौशन' ये याद रखना कि दुनिया में हम नहीं
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