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ग़ज़ल
आज महताबी पे चढ़ता है वो बहर-ए-सैर-ए-माह
जानता हूँ कुछ तिरा चमका सितारा चाँदनी
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
साइद से तिरे शोले यूँ हुस्न के उठते हैं
हाथों में तिरे गोया महताबी-ए-दस्ती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-महल उस शोख़ के जा के पाँव जो हम ने फैलाए
शर्म-ओ-हया ने उठने न दी चिलमन जो छुटी महताबी की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
आप हों जल्वा-नुमा रात को महताबी पर
हम भी तो देखें कि क्यों कर मह-ए-ताबाँ निकले