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ग़ज़ल
उन की नन्ही उँगली तो अब कम्पयूटर से खेले है
आज के बच्चों की नज़रों में चंदा-मामा कुछ भी नहीं
तनवीर गौहर
ग़ज़ल
आँगन के आग़ोश में लेटे शब-भर नाम बिगाड़े थे
तारों को इश्टार कहे थे और 'क़मर' को मामा जी
शारिक़ क़मर
ग़ज़ल
ऐ मामा छेद भेद कुछ इस में ज़रूर है
बीबी से तू ख़फ़ा है मगर है मियाँ से ख़ुश
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
रात मिले चंदा मामा से और परियों के देस गए
उड़न-खटोले में देखे थे बग़ल में बैठे अल्लह-मियाँ
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है