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ग़ज़ल
दिल-ए-जूँ-शम्अ' बहर-ए-दावत-ए-नज़्ज़ारा लायानी
निगह लबरेज़-ए-अश्क ओ सीना मामूर-ए-तमन्ना हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'सैफ़' ये दर्द से मामूर ख़राबे दिल के
कितनी मुश्किल से बसाए हैं तुम्हें क्या मालूम
सैफ़ुद्दीन सैफ़
ग़ज़ल
कोई मजनूँ की इज़्ज़त इश्क़ की सरकार में देखे
बड़ी ख़िदमत पे ऐसा आदमी मामूर होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
तेरी ख़ंदा-पेशानी में कब तक फ़र्क़ न आएगा
तू सदियों से अहल-ए-ज़मीं की ख़िदमत पर मामूर है चाँद