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ग़ज़ल
वो सितम-पेशा कहाँ शर्म-ओ-हया रखते हैं
हम ग़रीबों पे हर इक ज़ुल्म रवा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि ज़ुल्म से मा'ज़ूर है फ़लक
बर्तानिया है ख़ल्क़ की ग़म-ख़्वार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क्या वज्ह तेरे ज़ुल्म-ओ-सितम में मज़ा नहीं
ऐ दौर-ए-चर्ख़ आज वो शायद नहीं शरीक