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ग़ज़ल
अब्दुल अलीम आसि
ग़ज़ल
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मैं ने तो खेल खेल में तोड़ा था उस का दिल
फिर सारी उम्र उस को मनाना पड़ा मुझे