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ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
अगर सुनानी है हर क़दम पर नई कहानी तो हार मानी
फ़रेब खाते हुए गुज़रनी है ज़िंदगानी तो हार मानी
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
वफ़ा जब ज़िंदा होती है जफ़ा दम तोड़ देती है
सितमगर की हर इक ज़ालिम अदा दम तोड़ देती है
इमराना मुशताक़ मानी
ग़ज़ल
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अब हमें दे दो ये मिट्टी है हमारे काम की
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
तसव्वुर बाँधते हैं उस का जब वहशत के मारे हम
तो फिर करते हैं आप ही आप क्या क्या कुछ इशारे हम
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
तहय्युर है बला का ये परेशानी नहीं जाती
कि तन ढकने पे भी जिस्मों की उर्यानी नहीं जाती