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ग़ज़ल
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
आयत नहीं हदीस नहीं जिस को मानिए
है नज़्म-ओ-नस्र अहल-ए-सुख़न सर-बसर ग़लत
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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आयत नहीं हदीस नहीं जिस को मानिए
है नज़्म-ओ-नस्र अहल-ए-सुख़न सर-बसर ग़लत