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ग़ज़ल
ये तुझ को हसरत-ए-ता'मीर-ए-आशियाँ क्यों है
तू महव-ए-सिलसिला-ए-सा'इ-ए-राएगाँ क्यों है
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-हस्ती को ब-सद-हसरत-ए-ता'मीर न देख
शम्अ' से रब्त बढ़ा शम्अ' की तनवीर न देख