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ग़ज़ल
धूमें मचाएँ सब्ज़ा रौंदें फूलों को पामाल करें
जोश-ए-जुनूँ का ये आलम है अब क्या अपना हाल करें
ताबिश देहलवी
ग़ज़ल
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आज उस फूल की ख़ुशबू मुझ में पैहम शोर मचाती है
जिस ने बे-हद उजलत बरती खिलने और मुरझाने में